सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

        लम्बे अर्से  से अपने ही घर से इतनी दूरी किसी को बेचैन करे या न करे मेरे लिए तो ये कुछ सालो का वनवास जैसा  गुजरा। बैंगलोर की ये तीसरी सुबह  एक नया सबेरा । 

सोमवार, 24 सितंबर 2012

                   9वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) 22-24 सितम्बर, 2012

रविवार, 23 सितंबर 2012

लखनऊ में एक शाम

अभिव्यक्ति एवं अनुभूति की सम्पादक आदरणीय पूर्णिमा वर्मन के लखनऊ आगमन पर आयोजित काव्य गोष्ठी में ग्रुप के अनेक सम्मानित सदस्यों ने शिरकत की |

यूनाईटेड इंडिया इन्स्युरेंस कम्पनी लिमिटेड के चेयरमैन कम मैनेजिंग डायरेक्टर के साथ कारपोरेट क्लब के सदस्य विकास अधिकारीगण




विकासअधिकारीगण जिन्हें यूनाईटेड इंडिया ने कारपोरेट क्लब के लिए नामित किया है | नालंदा लर्निंग सेंटर के प्रांगण में सी.एम्.डी. श्री जी. श्रीनिवासन, जी.एम्., श्री बी. कृष्णमूर्ति,  डी.जी.एम्. श्रीमती पी. हेमामालिनी, चीफ मैनेजर श्री ए. पदमनाथान, नालंदा लर्निग सेंटर के प्रिन्सिपल & चीफ मैनेजर श्री  कृष्ण कुमार श्री के साथ फैकेल्टी मेम्बर्स & समस्त चयनित कारपोरेट क्लब के मेम्बेर्स विकास अधिकारीगण.

शुक्रवार, 21 सितंबर 2012

चित्रकार

 

 

चित्रकार के चित्र की


खामियोँ को बिन्‍दुओँ से

उजागर करते सब,

काश ! कोई एक बढकर

सुधार देता चित्र,

गुमनाम जिन्‍दगी के

अंधेरे में

डूबने से पहले

बच जाता

एक चित्रकार।

वक्त

वक्त के इस समंदर में

 बांध लेना वक्त को

ये मुमकिन नहीं !

पर कोशिशे लाख होती है

वक्त जो ठहरता नहीं.!!



शनिवार, 8 सितंबर 2012

प्रवासी साहित्यकार: सुरेश चन्द्र शुक्ला "शरद आलोक"

 साहित्याकर समाज का प्राण होता है वह अपनी सांसारिक अनुभूतियो को मार्मिक अभिव्यक्ति देते हुए लोकभावनाओ का प्रतिनिधित्व करता है । समाज के वातावरण की नीव पर ही साहित्य का प्रसाद खड़ा होता है । जिस समांज की जैसी परिस्थतिया होगी वैसा ही उसका साहित्य होगा । नार्वे में ओस्लो विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त करने वाले प्रथम भारतीय सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' अपनी सृजनात्मक शैली से नित्य नवीन अनुभूतियों को संजोते और सँवारते हए देशी और विदेशी पाठकों को राससिक्त कर रहे है । २५ वर्ष पूर्व लखनऊ से उड़कर नार्वे पहुँच शुक्ल जी ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा के बूते पर नोर्वे जैसे हिन्दी के लिए विपरीत वातावरण वाले देश में भी हिन्दी - नॉरवेजीय द्वैभाषिक पत्रिका 'स्पाइल दर्पण ' का प्रकाशन शुरू किया । उनके द्वारा प्रवाहित साहित्य संगम की यह धारा गंगा यमुना के पवित्र संगम की तरह अवाध गति से बहती हुयी हजारों पाठको को अपनी अभिव्यक्ति से अभिसिंचित कर रही है ।
'शरद आलोक' की कहानी संग्रह 'अर्धरात्री का सूरज" जंहा एक ओर नार्वे की धरती  पर भिन्न विषय वस्तु,नए कथानक ,नए परिवेश से हिन्दी कहानी के आकर्षण को बढ़ा रह है वंही उनके द्वारा उर्दू में लिखित 'तारुफी ख़त' अन्य भारतीय  भाषाओं के प्रति उनकी ललक ओर रुझान को दर्शाता है  | सुखद ओर आनंददायक लोक में  विचरण  करने के लिए कल्पना ह़ी  कवि  का साधन होती है | इसी परिपेक्ष में कवि द्वारा रचित वेदना, नंगे पांव का सुख,दीप जो बुझते नहीं, नीड में फंसे पंख, सम्भावनाओ की तलाश , गंगा से ग्लोमा के संगम में चिंतन ,विषयवस्तु,भाषा, शिल्प ओर प्रस्तुतीकरण के प्रयोग परलक्षित हो रहे हैं | 
कल्पना की सुधा से सिक्त ;शरद आलोक' के गीत,कहानी,मानव के व्यथित ह्रदय को शांति प्रदान करते है | सुरेश चन्द्र शुक्ल ने विदेश में अपने लम्बे प्रवास के बावजूद हिन्दी के अगाध प्रेम ओर अपनी माटी की गंध पर आंच तक नहीं आने दिया | परदेश में रहते हुए सामाजिक पीड़ा  ओर स्वदेश प्रेम को उकेरती इनकी कहानी 'मंजिल के करीब' के अंश :
 अक्सर नार्वेजियन समाचार पत्रों में निरी  बेहूदी बाते छपती है | तीसरी दुनिया के देशों को समाचार पत्रों में स्थान काम मिलता है | भारत -पाकिस्तान -बांग्लादेश के बारें में पूछो ह़ी नहीं  | एक दिन एक समाचार पत्र ने प्रकाशित किया - तीसरी  दुनिया की प्रवासी औरते चूहे की बच्चा पैदा करती हैं|  कितनी शर्म की बात है शायद ह़ी कोई प्रवासी किसी नार्वेजीय के बारें में ऐसा सोचता हो |  कभी -कभी मन में आता है कि अपने वतन  भाग चलो | अपने देश में काहे जैसा हो सुकून है शांती है | अपने देश की मिट्टी में जो सोंधापन  है जो खुसबू  है वह यंहा नहीं है | यंहा आसमान भी मानो हमें  निगलना चाहता है |